इसका मतलब यह हुआ कि किसी को आपबीती समझा ही नहीं सकते। यहां हर कोई अपने अपने तरीके से हृदय के भावों को शब्दों के रूप में समझना चाहता है, लेकिन डूबना कोई नहीं चाहता। अगर आप भी संतों की परंपरा का अनुशरण करते हुए जीवन की अतल गहराई में डूबोगे, तब खुदबखुद बिना समझाए, निःशब्द रूप में ही सबकुछ समझ जाओगे। तब कुछ कहने की जरूरत नहीं होगी, तब कुछ सुनने की जरूरत भी नहीं होगी।
जरा गहराई में उतरकर तो देखो, डूबकर तो देखो। खुद को जी सकोगे, परमात्मा को जी सकोगे। सुंदर सृष्टि के अनगिनत और विभिन्न रूपों का दीदार कर सकोगे, साहब का विराट स्वरूप निहार सकोगे...।
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