गुरुवार, 31 अक्टूबर 2019
चहुँओर साहब की अनुभूति...💐
बुधवार, 30 अक्टूबर 2019
तर्क कुतर्क...💐
संतों का कठोर जीवन...💐
मंगलवार, 29 अक्टूबर 2019
28 बरस का वह नवयुवक...💐
प्रियतम से मिलन...💐
सोमवार, 28 अक्टूबर 2019
नशा उतार दिया...💐
शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2019
चलो दिवाली मनाएं...💐
सिर्फ भाव हैं, ज्ञान नहीं...💐
बुधवार, 23 अक्टूबर 2019
सदगुरु कबीर और धर्मनि आमीन...💐
मेरी पुकार की सार्थकता...💐
मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019
उन दिनों की बात है...💐
कोमल भावनाएं...💐
सोमवार, 21 अक्टूबर 2019
साहब से मोहब्बत कर लो...💐
रविवार, 20 अक्टूबर 2019
उनके लिए जीऊं उनके लिए मरूँ...💐
जीवन की अतल गहराई...💐
मंगलवार, 8 अक्टूबर 2019
सद्गुरु कबीर धर्मनगर दामाखेड़ा के उत्सव पर्व...💐
सद्गुरु कबीर धर्मनगर दामाखेड़ा का माघी मेला, दशहरा पर्व, बसंत पंचमी के इंद्रधनुषी रंग मुझे बचपन से अपनी ओर खींचते रहे हैं। मेरे लिए इन उत्सवों और रंगों के अनेकों गहरे मायने हैं। दामाखेड़ा इन उत्सवों और पर्वों में जीवंत हो उठता है, सत्यनाम की महक से चारों दिशाएँ सुवासित हो उठती है, जनजीवन उल्लासित और प्रफुल्लित हो उठता है। हर पर्व का सीधा संबंध हृदय से है, आस्था से है, आत्मा का परमात्मा से मिलन का है।
दामाखेड़ा के इन उत्सवों में कोई अपने को खोजने आता है, कोई साहब को खोजने आता है। कोई अपनी मुक्ति के लिए आता है तो कोई साथ छोड़ गए अपने परिजन की मुक्ति के लिए आता है। कोई गुरु की तलाश में आता है तो कोई अपने गुरु, अपने साहब के दर्शन बंदगी और प्रसाद के लिए आता है। कहीं साहब और उनकी वाणियों को लेकर गंभीर चर्चाएं होती है तो कहीं कोई अल्हड़ संत भजन के माध्यम से साहब की अनुभूतियों में डूबा हुआ होता है। कोई सेवा करने आता है, तो कोई आनंद मनाने। कोई दो वक्त का पेट भरने आता है तो कोई बाजार लगाकर अपनों के दो वक्त का पेट भरने आता है। कहीं दोस्तों की टोली चाय के ठेलों के पास मस्ती में लीन रहते हैं, वहीं बच्चों की नजर खिलौने, नए कपड़े, पानीपुरी और चाट की दुकानों पर टिकी होती है, तो कहीं कोई युगल प्रेमी हाथों में हाथ लिए गलियों में उन्मुक्त उड़ान भर रहे होते हैं।
इन्हीं इंद्रधनुषी रंगों से लबरेज दामाखेड़ा की यादें हैं। ये यादें बड़ी गहरी हैं, ये संस्मरण बड़े ताजे हैं, मीठे हैं। एक तरफ तो ये पर्व, ये उत्सव और मेलों की स्मृतियां एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सहज संस्कार के रूप में प्रसारित हो रही है। वहीं दूसरी तरफ साहब की मनभावन वाणियों के माध्यम से, तो कहीं पान परवाना के माध्यम से धरती के कोने कोने तक पहुंच रही है। उत्सव के इन लम्हों को जीने के लिए समाज के हर वर्ग के लोग आते हैं, सामाजिक और धरातलीय सीमाओं को पीछे छोड़कर लोग इसका हिस्सा बनते है, समरसता का प्रसार होता है, लोग एक दूसरे से जुड़ते हैं, परमात्मा से जुड़ते हैं। दामाखेड़ा के ये पर्व, ये उत्सव, ये मेले जीवन को सही ढंग से जीना सिखाते हैं, जीवन का सही मायने बताते हैं।
आज साहब के अवतरण दिवस विजयदशमी पर दामाखेड़ा में नहीं हूँ, लेकिन मेरा पूरा परिवार वहां उपस्थित हैं। घर पर अकेले दूर बैठे कल्पनाओं के माध्यम से ही महसूस कर रहा हूँ कि वहां ये हो रहा होगा, वो हो रहा होगा, सबको बड़ा आनंद आ रहा होगा... खासकर दामाखेड़ा के भोजन प्रसाद को याद कर रहा हूँ। वहां की कल्पनाओं के अहसासों से ही मन गदगद है।
💐💐💐
बुधवार, 2 अक्टूबर 2019
इशारों में कहिए...💐
कहते हैं परमात्मा की उपस्थिति तो हर जगह है, जगत के प्रत्येक रूप में है। वो सूक्ष्म में भी है और स्थूल में भी। वो पवन में भी है और निर्वात में, वो जड़ में भी है और चेतन में भी। वो हर अणु में है और हर परमाणु में भी। वो दृश्य में भी है और अदृश्य में भी।
जब वो संसार के हर प्राणी में मौजूद हैं, हर किसी के अस्तित्व में मौजूद है, ब्रम्हांड के हर रूप में उसकी उपस्थिति है, जब वो सार्वभौम हैं तो उनकी बात छुपाकर क्यों की जाती है? उनकी बात धीमी आवाज में क्यों बताई जाती है? उनके बारे में हर कोई इशारों में ही क्यों कहता है? जबकि हर कोई उनके बारे में जानना चाहता, उन्हें हर कोई छूकर देखना चाहता है, रहस्यों के पार झांकना चाहता है, पर्दे के पीछे छुपे राज को जानना चाहता है।
अधिकतर लोग कहते हैं परमात्मा की बात खुलकर सार्वजनिक रूप से नहीं करनी चाहिए, इशारों में बता देना चाहिए और इशारों में समझ लेना चाहिए, राज को राज ही रखना चाहिए। लोग शायद सही कहते हैं।
💐💐💐
वो मेरी दशा पर मुस्कराते हैं...💐
वो कहते हैं "जो हो रहा है उसका आनंद लो।" अब उन्हें कैसे बताऊं कि वहां कोई आनंद नहीं है, कोई मजा नहीं है, बल्कि वहां तो आंसू ही आंसू है, तड़प ही तड़प है, सजा ही सजा है।
भगवान कसम वो मेरा एक मिनट के लिए भी पीछा ही नहीं छोड़ते। मेरे साथ खाते हैं, मेरे साथ सोते हैं, मेरे साथ ऑफिस जाते हैं, मेरा काम भी वही करते हैं। रात रातभर मुझे जगाए रहते हैं, बिना बुलाए वो सपने में भी चले आते हैं, यहां तक कि टॉयलेट में भी मुझे अकेला नहीं छोड़ते। बहुत कोशिश करता हूँ कि उनसे पीछा छूट जाए, वो मेरे पीछे न आएं। लेकिन वो तो मेरी परछाई बनकर मुझसे चिपके हुए हैं, कभी अलग ही नहीं होते।
यार कोई ताबीज बताओ, कोई मंतर बताओ, कोई उपाय बताओ, कोई तो तरीका बताओ कि वो मेरे पीछे न आएं। कम से कम सुकून से चार पल सो तो सकूँ, शरीर सूखकर कांटा हो गया है। उन्हें मेरे ऊपर बिल्कुल भी तरस नहीं आता। ऊपर से मेरी दशा पर वो मुस्कुराते हैं, मजा लेते हैं।
💐💐💐
मेरी तन्हाई 💐💐💐
तन्हाई केवल एक एहसास नहीं, बल्कि एक ऐसी गहरी दुनिया है जहाँ कोई और नहीं, बस आप और आपकी सोच होती है। यह एक खाली कमरा नहीं, बल्कि एक भरी हुई क...
-
सुख और दुख हमारे जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। जैसे चलने के दायां और बायां पैर जरूरी है, काम करने के लिए दायां और बायां हाथ जरूरी है, चबाने ...
-
जो तू चाहे मुझको, छोड़ सकल की आस। मुझ ही जैसा होय रहो, सब सुख तेरे पास।। कुछ दिनों से साहब की उपरोक्त वाणी मन में घूम रही थी। सोचा उनके जैस...
-
पान परवाने का मोल तब समझा जब जिंदगी तबाह होने के कगार पर थी, साँसे उखड़ने को थी। जीवन के उस मुहाने पर सबकुछ दांव पर लगा था, एक एक पल युगों के...