शनिवार, 29 जून 2019

असमर्थ हूँ...💐

मित्रों... मेरे सवा सौ करोड़ देशवासियों...😊

मैं साहब की वाणियों को दोहे चौपाई की भाषा में बिल्कुल भी समझ नहीं पाता, बड़ी कठिनाई होती है। जानने और समझने की बहुत कोशिश करता हूँ, लेकिन हमेशा असमर्थ रहता हूँ और अर्थ का अनर्थ कर बैठता हूँ।

मुझे मात्र साहब के प्रवचन ही थोड़े बहुत समझ में आते हैं। फेसबुक मित्रों द्वारा पोस्ट किए गए, टेग किए गए पंक्तियों और साहब की फोटो देखकर उसे साहब से संबंधित मानकर लाइक और कमेंट कर लिया करता हूँ, "सप्रेम साहेब बंदगी साहेब" लिख लिया करता हूँ। लेकिन मेरी खोपड़ी के अंदर कुछ नहीं जाता।

ये बात मुझे बहुत खलती है। मैं जब भी हमारे पवित्र ग्रंथो को पढ़ने के लिए पन्ने पलटता हूँ, जम्हाई आना शुरू हो जाता है, कुछ ही देर में बोर हो जाता हूँ। कृपया कोई उपाय सुझाइए, जिससे ग्रंथों के प्रति मेरी रुचि बढ़े और आप सभी की तरह मैं भी साहब की दिव्य वाणियों का आनंद ले सकूँ...

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