चूंकि साहब फेसबुक पर हैं, और वो सबको पढ़ते भी हैं। हर किसी की खबर रखते हैं। उनके सामने किसी भी विषय पर कुछ कहने या लिखने में बड़ी घबराहट होती है, डर लगता है। जो खुद ज्ञान हैं, ध्यान हैं, प्रेम हैं, मुक्ति हैं, सर्वोच्च सत्ता हैं, उनके सामने भला क्या कहें और किस भाँति कहें?
जिंदगी उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती है, इसलिए लिखने के लिए उनके अलावा कोई और विषय भी नहीं सूझता। बड़ी दुविधा है।
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