दरअसल यही आम जिंदगी है, आम जिंदगी की मुसीबतें थमने का नाम नहीं लेती। व्यक्ति हर तरफ से असहाय होता है। और यही आम जिंदगी, तकलीफों और परेशानियों से घिरी परिस्थिति साहब से जुड़ने का सुनहरा अवसर भी होता है। जब दुखों और परेशानियों का पहाड़ उस पर टुटता है, कहीं से भी उसे कोई मदद नहीं मिलती, तब दहाड़ मारकर साहब को मदद के लिए पुकारता है। वह चिर निद्रा से जागता, साहब को याद करता है। मेरी दृष्टि में यही आम जिंदगी श्रेष्ठ है, यही वो पल होता जिस पल साहब मिल सकते हैं, हमारी हृदय की गहरी पुकार पर साहब हमारा हाथ थाम सकते हैं।
विपरीत परिस्थितियों से घिरी जिंदगी में बेपनाह तड़प होती है, तलाश होती है, गहरी प्यास होती है। बस तड़प को, उस प्यास को, उस तलाश को साहब से जोड़ दें तो बात बन सकती है।
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