हृदय में साहब के लिये प्रेम होगा तो उन्हें भी अपने भक्त की चिन्ता अवश्य होगी। साहब के प्रति प्रेम होता है तभी सच्ची भक्ति बन पड़ती है। प्रेम आत्मा के परमात्मा से मिलन की पहली सीढ़ी है। अन्त में जीव और परमात्मा का मिलन, प्रणय संस्कार होता है और दोनों एक दूसरे में आत्मसात और विलीन हो जाते हैं। न जीव रहता है और न परमात्मा, केवल शुद्धतम रूप में प्रेम ही रह जाता है। यह भक्ति की पराकाष्ठा है, आध्यात्मिक यात्रा की पूर्णता है।
जगमग जोति गगन में झलकै, झीनी राग सुनावै।
मधुर मधुर अनहद धुन बाजै, अमृत की झर लावै।।
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