शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

जिन पाया तिन रोय...💐💐💐

भक्ति साहब के प्रति एक पवित्र भावना होती है, साहब के प्रति तीव्र प्रेम होता है। हमें परमात्मा से, साहब से कोई शर्त या मांग नहीं करनी चाहिए कि वह हमारी इच्छाओं की पूर्ति उसी तरह करे जिस तरह हम उन्हें पाना चाहते हैं। भक्त साहब से प्रेम रखता है, उस प्रेम में कोई शर्त नहीं होती, कोई बंधन नहीं होता। उस प्रेम में चरम उत्कंठा होती है। वह हर समय साहब को ही सोचता है और उनके नाम का सतत स्मरण करता है। नींद में, जागरण में, कार्य में, घर में, भोजन के दौरान, टहलने के दौरान, भक्त साहब के ही विचारों में डूबा रहता है। हर पल, हर क्षण साहब को ही सोचता है। यह एक तरह का जूनून है, और यह जूनून भक्त को साहब से बांधे रखता है। जब तन और मन स्थिरतापूर्वक, दृढ़तापूर्वक एवं लगातार साहब पर केन्द्रित होता है, तब वह क्षण भी आ जाता है जब वह परमात्मा से, अपने साहब से एकाकार हो जाता है। वह उस अद्वितीय प्रेमवश फुट फुटकर रो पड़ता है।

हँस हँस कंत न पाइया, जिनि पाया तिन रोय।
हँसी खेला जो हरि मिलै, तो कौन सुहागिन होय॥

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