रविवार, 25 नवंबर 2018

साहब का सच्चा भक्त...💐

रात करीब दो बजे घुमंतु लोगों का एक झुंड कमरे में सत्संग कर रहा था। कहते हैं जिनमें से कुछ लोग साहब तक पहुँच चुके थे और कुछ लोग मार्ग में थे।

कहते हैं लाखों और करोड़ों में कोई एक साहब का सच्चा भक्त होता है जो साहब को जीता है। मैं तो हर छै महीने में दामाखेड़ा का मेला जाता हूँ, साहब का प्रवचन सुनता हूँ, हर रोज गुरु महिमा और संध्या पाठ करता हूँ, ध्यान करता हूँ। मुझे तो अनहद नाद भी सुनाई देता है। फिर चूक कहाँ हो रही है? लाखों और करोड़ों की भीड़ में, साहब के भक्तों की सूची में मेरा नाम क्यों नहीं है? क्या मैं साहब का सच्चा भक्त नहीं हूँ? साहब की ओर मार्ग में बढ़ रहे एक नन्हें जिज्ञासु ने प्रश्न किया।

सद्गुरु कबीर साहब के अनन्य भक्त हुए धनी धर्मदास साहब और आमिन माता साहिबा। क्या उनकी तरह तुम भी अपना जीवन हथेली पर रखकर साहब को भेंट कर सकते हो और कह सकते हो कि साहब आज से मेरे जीवन पर आपका सर्वाधिकार है। क्या साहब के नाम का दीपक पल पल हृदय में प्रज्वलित करने का साहस रखते हो? क्या उनके जैसी दृढ़ता है तुम्हारे भीतर? अगर तुम उनका अनुसरण कर सके तो अवश्य ही लाखों और करोड़ों की भीड़ में साहब के सच्चे भक्त के रूप में पहचाने जाओगे। संत के कथन से कमरे में खामोशी फैल गई।

खामोशी तोड़ते हुए संत ने पुनः कहा- "धर्मनि-आमिन सा चरम त्याग और बलिदान कहाँ से लाओगे? हमारी भक्ति उनके प्रेमाश्रु के एक बूंद के बराबर भी नहीं है।" लाखों और करोड़ों की भीड़ में कोई विरला ही साहब को जीने वाला होता है, वही साहब का सच्चा भक्त और प्रेमी होता है।

दो दल आन जुरै जब सन्मुख, शूरा लेत लड़ाई।

टूक टूक होय गिरे धरणी पै, खेत छांड़ि नहि जाई।।

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