रविवार, 9 दिसंबर 2018

अस्तित्व तुझमें ही कहीं खो गया...💐

तुझे याद करते करते तो सबकुछ खो गया। सारी की सारी साँसे खप गईं, जिंदगी का कतरा कतरा कुर्बान हो गया। जिसे रूह कहते हैं, आत्मा कहते, जीवन का अस्तित्व कहते हैं, अपने भीतर से निकालकर तुम्हें उसी पल सौंप दिया था जिस पल हृदय के आईने में अपनी सूरत की जगह तुम्हारा चेहरा देखा, अपने भीतर तुम्हारा अख़्स देखा, अपनी परछाई में तुम्हारा रूप देखा।
कहने को तो बस अब ये माटी का तन ही रह गया है, जिसे अहंकार वश अपना कह लेता हूँ। लेकिन अब तन भी जर्जर होने को है, किसी तूफ़ान के एक थपेड़े से यह भी किसी दिन झरझराकर गिर पड़ेगा, ढह जाएगा।
जैसे हरी घास पर बिखरी ओस की बूंदे जो भोर की पहली किरण पड़ते ही मोतियों की तरह चमकती हैं, पैर पड़ते ही अपना रूप खो जाती हैं। रात के आकाश में हीरों की भांति टिमटिमाते तारे सूरज की रोशनी के आते ही अपना रूप खोकर प्रकाश में विलीन हो जाते हैं। ठीक उसी तरह मेरा भी वजूद तुम्हीं में कहीं खो गया है, विलीन हो गया है।
जिंदगी में अब तेरे और मेरे की बात नहीं है, दूरियों और फासलों की बात नहीं है, गहराई और उथलेपन की बात नहीं है, समतल और ढलान की बात भी नहीं है। अब तो बस मौन अभिव्यक्ति की बात है, निःशब्द की बात है।
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