शनिवार, 15 दिसंबर 2018

ब्रम्हचारी का जीवन...💐

वो ब्रम्हचारी उमर भर लोगों को शिक्षाएं देते रहे। समाज को धर्म, अध्यात्म और परमात्मा की बात बताते रहे। उनकी रहनी गहनी भी ठीक थी। मर्यादित और संयमित जीवन जीते थे।

लेकिन ढ़लती उमर में विपरीत परिस्थितियों का एक झोंका आया, जमकर बीमार पड़ गए। परिवार तो पहले ही छोड़ आए थे, अब वापिस जाना मुश्किल जान पड़ा। अपनी सेहत के लिए अब दूसरों पर निर्भर रहने लगे, भक्तों पर निर्भरता बढ़ने लगी। दो वक्त की रोटी भी अब बड़ी मुश्किल से मिल पाती थी।

समय बीतने के साथ लोग और भक्त उस सन्त को दुत्कारने लगे, उनसे पीछा छुड़ाने लगे। वो बहुत विचलित हो उठे, और एक दिन अपने आश्रम के मैले कुचैले बिस्तर पर लौट आए। काँपते हाथों से चूल्हे में अपने लिए खाना बनाते, और नाम स्मरण में लीन रहते।

नवयुवक शिष्य को उनके गिरते स्वास्थ्य का पता चला तो उस संत को मिलने चले गए। अपने शिष्य को सामने देखकर संत की आंखों से आंसू छलछला उठे, गला भर आया। शिष्य को गले लगाते और सिसकते हुए बोले-
"गृहस्थ आश्रम में रहते हुए ही साहब की भक्ति करना बेटा। जिंदगी बेरहम है, लोग बेरहम हैं और शरीर जर्जर है।"

जो संत जनसमुदाय के लिए जीता है, समाज के लिए अपना जीवन देता है, उनकी ऐसी दयनीय स्थिति देखकर वह नवयुवक सहम गया, फट पड़ा।

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