शनिवार, 24 नवंबर 2018

साहब का साथ...💐

अस्पताल की बिस्तर पर जब मौत से जंग हो थी तब जान बचाने के लिए न तो कोई कांग्रेस का नेता आया था, न भाजपा का नेता आया था, न ही जनता कांग्रेस का, और न ही समाज और जातिवाद के ठेकेदार। तब सिर्फ साहब थे, तब सिर्फ साहब ने हाथ बढ़ाया था और जान बचाई थी, साँसे दी थी। उनके नाम की डोर थामें ही मृत्यु पर विजय मिली थी।

मैं पूछता हूँ कहाँ थी तुम्हारी राजनीति जब मेरी तीन साल की नन्ही सी बेटी पांच दिन अस्पताल में दर्द से तड़पती रही, कहाँ थे तुम जब हाथ जोड़कर उस डॉक्टर से जान बचाने के लिए गिड़गिड़ाता रहा। फीस कम करने के लिए पैरों पर गिरा था। तब भी सिर्फ साहब थे, तब भी उन्होंने ही हाथ थामकर हमें जिंदगी दी।

मेरे मासूम प्यार को छिनने वाले, जिंदगी भर का दर्द देने वाले राजनीति और लोकतंत्र के ठेकेदार, जातिवाद के ठेकेदार तुमने हर कदम पर धोखे के अलावा कुछ दिया ही क्या है?

आज फिर तुमसे कह रहा हूँ, मुझे तुम्हारी जरूरत नहीं है। उस परमात्मा की जरूरत है, साहब की जरूरत है, जिन्होंने ये साँसे दी, खूबसूरत संसार को निहारने के लिए हमें जिंदगी दी।

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