गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

शून्य शिखर...💐

शून्यता के शिखर पर बैठा व्यक्ति सबकुछ समर्पित कर चुका होता है। शून्य के जितने अंदर वह जाता है, और भी बड़े शून्य आकाश का उसे आभास होता है। उसकी यात्रा समाप्त ही नही होती, एक के बाद दूसरा, तीसरा, चौथा फिर पाँचवा शून्य शिखर... यह क्रम चलते रहता है। दरअसल वह शून्यता चेतनता का चरम होता है।
शून्य शिखर पर वह अतीन्द्रिय और दिव्य सत्ता के स्पर्श को महसूस कर रहा होता है और उसी के अनुसार उसके सारे कार्य और जीवनशैली निर्धारित हो जाते हैं। उस शून्य चेतनता की अवस्था में वह सामान्य जीव जगत से संतुलन बनाकर जीने की बहुत कोशिश करता है, लेकिन असफल ही रहता है। वो इस जीव जगत में सबकी भाषा समझता है, सबको समझता है, लेकिन उसकी गहराई और शून्यता किसी सामान्य मानव के कल्पना से भी परे की बात होती है।
अनंत से संबंध जुड़ते ही उसे अंनत को देखने वाली आंखे और अनंत की आवाज सुनने वाले कान मिलते हैं। वह उस परमात्मा को, उस अनंत को अपने जीवन की डोर सौंप देता है। उसका जीवन साहब की मस्ती और खुमारी से ओतप्रोत हो जाता है। तब उसे साहब की लालिमा चहुँ ओर नजर आता है, और वह उसी मदहोशी में सर्वदा लीन रहना चाहता है...
(Lekhraj Sahu)
lekhrajsahebg@gmail.com

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