किसी उजाले की खोज में निकला था, सुबह होने की प्रतीक्षा थी, ओस की बूंदों से नहाया हरा घास का मैदान सामने था, वातावरण में धुंध फैला था, आसपास के पेड़ पौधे अस्पष्ट से थे, पर लक्ष्य एकदम साफ दिख रहा था।
घास पर जैसे ही पैर रखे, ठंड उसके हड्डियों तक पहुँच गया। जीने की तड़प, एक सांस ज्यादा लेने की जिद थी, कुछ दिन और जीना चाहता था। दर्द से कराहता दौड़ पड़ा।
मौत की छुअन से लौटा वह इंसान जिंदगी का मतलब समझ चुका था। वो बड़ी जल्दी में है, बहुत सारे काम बाकी है, अब वो दौड़ता है, खूब दौड़ता है। एक सांस में बहुत सारे अधूरे काम कर लेना चाहता है। रोज परमात्मा को शुक्रिया कहता है एक दिन और देने के लिए, चंद सांसे और देने के लिए।
शुक्रिया साहब...
(Lekhraj Sahu)
lekhrajsahebg@gmail.com
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