आज माघपूर्णिमा है। सुबह से ही रसोई में बर्तन पटकने की आवाज आ रही है। आज रसोई की तरफ से आती कुलबुलाहट की आवाज से बीपी अलसुबह नौ बजे से ही बढ़ा हुआ है। घर में कुछ लोग उपवास पर हैं, कुछ नही खाएंगे। लेकिन शाम को खीर बनेगी, अन्य दिनों की अपेक्षा रसोई में ज्यादा अच्छा बनेगा।
इधर वो बेचारा घबराया हुआ है, महीने का आख़री दिन है, पगार कब का खत्म हो चुका है। महीने की पगार को बिटिया के स्कूल, घर का किराया, खुद की दवाइयाँ, पत्नी की दवाइयाँ और इलाज, दहेज में मिले फटफटी के पेट्रोल, जिओ सिम के रिचार्ज ने पलक झपकते ही डकार लिया। पड़ोस के भलमनसाहत दुकानदार ने उधार किराने का सामान दिया दे दिया है।
दिनभर दोनों पति पत्नी कई बातों को लेकर खूब लड़े। शाम तक दोनों तमतमाए हुए थे। पत्नी ने आरती जलाई, दोनों ने गले फाड़कर आरती गायी-
आरती सत्यनाम की कीजे, तन मन धन ही न्यौछावर कीजे।
उंगलियां चाटकर दोनों ने बिना दूध की खीर खाई। उसकी हर पूर्णिमा कुछ ऐसे ही बीतती है। आम गृहस्थी की किचकिच और समस्याएं ऐसी की जीवन बीत गया पूर्णिमा मनाते और उपवास करते हुए, फिर भी उसके जीवन मे उजास नही आया।
लेकिन उसने पूर्णिमा मना ही लिया...
(Lekhraj Sahu)
lekhrajsahebg@gmail.com
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