बरसों बीत गए। समय के साथ खुद की खोज शुरू हुई, गुरु की खोज शुरू हुई, सद्गुरु की खोज शुरू हुई। आसपास ऐसा कोई नजर नहीं आया जिनके चरणों में माथा रखकर अपने प्रश्नों के उत्तर पा सकूँ, जिनकी छाया में जीवन गुजार सकूँ। लेकिन खोज जारी रही, प्यास बढ़ती रही।
एक दिन शाम को अंधेरे कमरे में ध्यान मग्न बैठा था, कोई आकाशवाणी हुई, किसी ने मुझे मेरे नाम से पुकारा, ये उनकी ही आवाज थी। मेरी चेतना को किसी ने झकझोर दिया, किसी अज्ञात सत्ता ने मेरे अस्तित्व को छू लिया। मैं हतप्रभ होकर, आनंदित होकर रोने लगा। आंसू थामें नहीं थमते थे, होंठ कांपने लगे। असीम की एक झलक मात्र से जीवन का जागरण हो गया। तब मैं जान चुका था कि अनिल कपूर के जैसे बाल और मूछे रखने वाले वो कोई साधारण मानव नहीं हैं, बल्कि वही परमात्मा हैं।
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