जिस रास्ते मैं निकल पड़ा हूँ, कहते हैं उस पथ का कोई भौतिक साथी या हमसफर नहीं है। एक-एककर लोग पीछे छूटते जाते हैं, सिर्फ एक साहब ही हैं जो साथ होते हैं, जिनकी मौजूदगी का आभास नितप्रति होते रहता है। साहब का साथ निश्चय ही आनंदित कर देने वाला, हतप्रभ कर देने वाला होता है। उनकी दिव्य और मधुर ध्वनि तले जिंदगी अनजान डगर पर निकल पड़ी है। साहब के साथ चलना, उन्हें निभाना बहुत कठिन है, बहुत कठिन। वो मिलकर भी कभी नहीं मिले।
सफर आनंददायक होने के बावजूद राह में बेपनाह दर्द है, न बुझने वाली प्यास है, अजीब सी पीड़ा है। ये दर्द, ये प्यास, ये पीड़ा बड़ी मीठी भी है। उनसे मिलने की यही तड़प इस सफर को जिंदा रखती है, उन तक पहुंचने की चरम इक्छा इस सफर को जिंदा रखती है। काश ये तलाश जारी रहे, ये खोज जारी रहे, ये सफर जारी रहे, इसका कोई अंत न हो। उनसे मिलने की तड़प और प्यास में ही ये शरीर प्राण त्याग दे।
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