हर बार की तरह इस बार भी मेरी अर्जी स्वार्थ से भरी थी। सदा सर्वदा से उस तेज प्रकाश पुंज से मेरा काम ही हाथ फैलाकर और निर्लज्ज होकर भीख माँगना है। कभी धन की भीख, कभी स्वास्थ्य की भीख तो कभी भक्ति और मुक्ति की भीख। उन्होंने मेरे घट के भीतर भी जरूर झाँककर देखा होगा, जीवन में फैली गंदगी को जरूर देखा होगा।
चौका के वक्त अंतःकरण के सारे कपाट खोल दिए थे, तन मन में चौका के शब्द और नाद गुंजायमान थे। हृदय प्रफुल्लित होकर उनकी आगोश में अर्पित था। पूर्ण विश्वास है कि उनके आशीष तले मेरा भी जीवन पल्लवित, पुष्पित और पोषित होगा। सपनों को पंख मिलेंगे, जीवन में रुमानियत आएगी, कलुषित विचार और अंधकार मिट जाएंगे। जो पान परवाना और प्रसाद मुझे मिला उसके जरिए निश्चित ही मेरे पूरे परिवार का भविष्य जगमग होगा, रौशन होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें