माता पिता, बंधु सखा और रिश्तेदार दीनहीन भाव से बिलखते रहते हैं। परमात्मा के आगे बिनती करते रहते हैं कि उसके बदले मुझे ले जाओ, लेकिन मेरे उस प्रिय को छोड़ दो। उसकी अभी उम्र ही क्या हुई है जो उसे ले जाने रथ तैयारकर लाए हो?
प्रकृति का का नियम इतना क्रूर क्यों है? शिकायतें क्यों न करूं? अस्पताल के बिस्तर का नंबर हर बार अलग अलग होता है, चेहरे भी हर बार अलग अलग होते हैं। लेकिन दर्द सबका वही होता है, एक जैसे होता है। मैं अक्सर उन जैसे मासूम चेहरों के लिए भगवान से लड़ पड़ता हूँ, जूझ पड़ता हूँ। जबकि उसका अंजाम जानता हूँ, अच्छे से जानता हूँ।
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