रविवार, 22 मार्च 2020

साहब को नस नस में जीना...💐

जब मैं कहता हूं-
"साहब को नस नस में जीना"
तो ये सिर्फ शब्द नहीं हैं, इसका भाव बड़ा गहरा होता है। इसकी थाह लेने के लिए आकाश की ऊँचाई और पाताल की गहराई भी कम है। इस स्थिति में जीवन जीना सचमुच में जीने के जैसा है। व्यक्ति की दशा अपरंपार होती है। यह स्थिति इंद्रियों और देह के पार की अनुभूति होती है।

अपने ही हाथों अपने प्राण को शरीर से निकालकर हथेली पर रखकर चलने जैसा है, समर्पण की पराकाष्ठा है। तब खुद के जीवन पर खुद का ही वश नहीं होता। सबकुछ उनकी इक्छा पर चलता है। वो सुलाता है, जगाता, हंसाता और रुलाता है। वो हरदम सामने रहते हैं। सोते, जागते, बात करते, चौका करते नजर आते हैं।

जैसा उन्होंने "साहब को नस नस में जीना" का मतलब बताया। मैं भी सोचता हूँ कि ऐसे ही मैं भी साहब को नस नस में जी लूँ। लेकिन साहब के प्रवचन के दस मिनट के शब्दों को भी जीवन में उतारने में ही हाथ पांव फूल जाते हैं। सच में दुनिया में विरले ही होंगे जो साहब को पल पल जीते होंगे। उनके दिव्य जीवन की कल्पना मात्र से सिर श्रद्धा से झुक जाता है।


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