रविवार, 22 मार्च 2020

ज्वलंत मुद्दे...💐

आज का विषय थोड़ा जुदा है, नैतिक मूल्यों के विरुद्ध भी। लेकिन मुझे लगता है कि यह चर्चा का विषय जरूर होना चाहिए। उम्मीद करता हूँ कि आप सबकी नजर इस विषय के नकारात्मक और सकारात्मक पहलुओं पर अवश्य जाएगी।

हमारे प्राचीन शास्त्रों के अनुसार जीवन को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में बांटा गया है, जिन्हें पुरुषार्थ भी कहा गया है। इन्हें जरा करीब से देखें तो जीवन को चलाए रखने, गतिमान रखने के लिए काम का महत्वपूर्ण स्थान है। जिसे हममें से अधिकतर लोग हेय दृष्टि से भोग की वस्तु भी कह देते हैं। खैर...

हम गहराई से सोचें, सामाजिक दृष्टिकोण अपनाएं, विस्तृत नजर से देखें तो पाएंगे कि काम जीवन का अनिवार्य हिस्सा है। अब हमारे सामाजिक ढांचे में अविवाहित, सन्यासी, वानप्रस्थी, ब्रम्हचारियों जैसे लोगों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। अतः हर किसी को सही समय पर विवाह संस्कार अवश्य अपना लेना चाहिए।

अब आते हैं असली मुद्दे पर...
विवाह की बात जब होती है तो हमारे शारीरिक रूप से विकलांग भाई बहन बहुत निराश होते हैं, उन्हें कोई जीवन साथी नहीं मिलता, उन्हें ठुकरा दिया जाता है, अपनी अपंगता के कारण काम जैसे जीवन के महत्वपूर्ण विषय से वंचित रह जाते हैं। जिससे उनमें मानसिक विकृति आती है, हीन भावना का जन्म होता है, अंततः वो अमूल्य मानव जीवन से निराश होते हैं। अतः उन जैसे लोगों के कामोत्तेजना की तृप्ति हेतु सरकारी नियंत्रण तले, उनकी मांग पर सेक्स वर्कर (महिला/पुरुष) की व्यवस्था की जानी चाहिए। दरअसल हमारा समाज विकलांगों को सिर्फ खाने, पहनने और जीवन निर्वाह ही देता है, जबकि उनकी कामेक्छाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है।

यह विषय भारत जैसे बंद समाज के लिए विचारणीय है, नया है। परंतु कई देशों में वेश्यावृत्ति वैध है। जिसके कारण विकलांगों का जीवन स्तर, वैचारिक स्तर, समाज से जुड़कर जीने की दरों में सुधार देखा गया है साथ ही अपराधों की संख्या में भी कमी आई है। एक बात और क्लियर कर देना चाहता हूँ कि पुरूष या महिला वेश्यावृत्ति को कानूनी रुप से मान्यता दिए जाने का पक्षधर नहीं हूं, लेकिन विकलांगों को जीवन और समाज के मुख्य धारा में जोड़ने के अन्य उपायों के साथ ही यह सुविधा दी जानी चाहिए।

कुछ लोग कह सकते हैं कि सरकारी अंडा, सरकारी शराब क्या कम हैं जो अब सरकारी वेश्यालयों के बारे में सोचा जाने लगा है। खैर, लेख लम्बा हो रहा है, ऐसे में लाभ-हानि सोचने के लिए आप सबसे परिपक्वता की उम्मीद करता हूँ...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...