गुरुवार, 20 जून 2019

साँवली सी वो लड़की...💐

सूरज के उगने से पहले और गांव के जागने से पहले ही वह उसके घर के पास पहुँच जाया करता था। उसे एक नजर देख पाने की उत्सुकता में रातें करवटें बदलते गुजारती था। दिनभर उसे देखते रहने और बातें करते रहने के लिए न जाने कितने ही बहाने बनाया करता।

साँवली सी वो लड़की किसी अल्हड़ नदी सी थी, पूरे गाँव में उसकी चर्चा होती थी, सबसे मिलती, खूब हँसती, खूब बतियाती। शहर से दूर हर गर्मियों की छुट्टी में वो अपनी नानी गांव आया करती। न जाने कब वो आंखों में रच बस गई।

जामुनी रंग सा उसका चेहरा बेहद आकर्षक था, पता नहीं क्यों वो अच्छी लगती थी, हर साल गर्मियों में उसका इन्तेजार रहता था।

क्रिकेट उसे पसंद था। उसके घर के सामने की गली में, नीम के पेड़ की छांव में हमारा क्रिकेट का मैदान हुआ करता। वो मुझे डेविड बुन के नाम से बुलाती। क्रिकेट के हर शॉट पर कमेन्ट्री करती, तो कभी खिलखिलाकर हंस पड़ती, कभी झूम उठती।

वो नीम का पेड़, वो गली, वो क्रिकेट का खेल, उसकी चहकती हंसी, उसका भोलापन, वो लोग, वो दिन बड़े याद आते हैं। वो बचपन का मासूम और अव्यक्त प्यार याद आता है।

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