बुधवार, 31 जुलाई 2019

जीवन का जागरण...💐

इन आँसुओ के पीछे बेपनाह दर्द है। बरसों से ये दर्द सीने में पल रहा है। उसकी पीड़ा सदैव जिंदगी झुलसाती रही है। हरेक चेहरे ने ठोकर दी, हरेक परिस्थितियों ने तोड़ा मरोड़ा लताड़ा और टीस दी। समस्याओं और हालातों ने ख्वाबों के पंख कतर दिए, जीने और उड़ने की सारी कोशिशें बेकार हो गईं। सुदूर रेगिस्तान के बीचोबीच एक बूंद जीवन के लिए असहाय तड़पता रहा।

रास्ते भर बेदर्द लोग मिले, जो हाथ छुड़ाते गए, उलाहना देते गए। हृदय छलनी कर देने वाली पीड़ाओं, तकलीफों, समस्याओं के बीच मर-मरकर जिंदगी जीती रही, सरकती रही। गला फाड़कर आसमान को घूरते हुए चीख निकली- "मुझे जिंदगी क्यों दी, सांसे क्यों दी??" "तू अगर है तो सामने आ",  "देख तेरी दी हुई जिंदगी खाक हुई जा रही है"।

वीराने में कहीं से संत का आगमन होता है। उन्होंने उठाया, गले से लगाया, अपने कमंडल से अमृत की कुछ बूंदे मुझे पिलाई। उनकी उंगली पकड़े अनजाने सफर की ओर बढ़ गया। जिंदगी अब जाग चुकी थी, भोर हो चला था। दूर से आते पंछियों का मधुर कलरव स्पस्ट सुनाई दे रहा था।

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