सोमवार, 29 जुलाई 2019

जलन...💐

जब कोई संत कहते थे कि उन्होंने जो कपड़े पहने हैं वो साहब के पहने हुए कपड़े हैं, तो उस संत से जलन होने लगती थी, उनके कपड़े अनेकों बार छूकर देखता था, उनसे बार बार पूछता था कि सच में ये कपड़े साहब के हैं?

जब कोई संत कहते थे कि साहब के लिए कपड़े सिल रहा हूँ, तो उनसे जलन होने लगती थी। उन संत के किस्मत पर जलता भुनता था और मन ही मन सोचता था कि इस दाढ़ी वाले बाबा में ऐसा क्या खास बात है कि साहब इन्हें अपने कपड़े सिलाई के लिए देते हैं।

जब कोई कहता था कि मेरे घर साहब का महाप्रसाद रखा है, साहब का बचा खाना रखा है, तो उससे जलन होती थी। वो महाप्रसाद हाथों में लेकर देर तक देखता था और सोचता था कि क्या साहब इस तरह का खाना खाते होंगे।

वो लोग जिन्हें साहब के कपड़े अपने तन पर ओढ़ने का सौभाग्य प्राप्त होता है, वो लोग जिन्हें साहब के कपड़े सिलने का सौभाग्य प्राप्त होता है, वो लोग जिन्हें साहब का महाप्रसाद ग्रहण करने का सौभाग्य प्राप्त होता है, जलन होती है।

जानता हूँ साहब सिर्फ मेरे नहीं हैं, जानता हूँ साहब से प्यार केवल मुझे ही नहीं है, और यह भी जानता हूँ साहब जन-जन के हैं, उनसे प्यार करने का सबको बराबर अधिकार है। लेकिन पता नहीं क्यों हर उस व्यक्ति से जलन होती है जिनके पास साहब की कोई वस्तु हो।

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