जाति, सम्प्रदाय और राजनीति बड़ा दलदल है। अच्छे और नेक लोग भी इस दलदल में कभी न कभी घिर जाते हैं। वैचारिक कट्टरता, साम्प्रदायिक कट्टरता, जातिगत मतभेद, राजनीतिक लोलुपता से आम आदमी त्रस्त रहता है, जो दो वक्त की रोटी, सुकून और शान्ति पसंद हैं।
सोशल मीडिया वैचारिक आदान प्रदान का सबसे पावरफुल माध्यम है। लेकिन कुछ संकुचित विचार वाले लोग सोशल मीडिया जैसे आम पहुंच के माध्यम को भी जाति, सम्प्रदाय और राजनीति का अखाड़ा बना देते हैं।
एक वर्ग जिन्हें बुद्धिजीवी कहते हैं अपने ही विचारों को पोषित करने में लगे रहते हैं। समाज के नासूर और घाव को कुरेदते रहते हैं, अपने तर्कों से सामाजिक बुराइयों को और ताजा बनाए रखते हैं।
जातिवाद, सम्प्रदायवाद, राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी और ठेकेदार जैसे कुछ चेहरे आम आदमी को अपनी मर्जी से जिधर चाहें उधर हाँकते रहते हैं। कोई आदमी को ये नहीं पूछता की भैया तुम क्या चाहते हो।
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