मंगलवार, 9 अक्तूबर 2018

गाँव की सुबह...💐

गाँव की अलमस्त सुबह, ब्रम्हमुहूर्त का समय, ओस की बूंदों से नहाई धरती, बीती रात की विदाई और नए सवेरे के स्वागत की तैयारी। ठंड से ठिठुरते दादाजी, चादर लपेटे, बिस्तर पर बैठे, भजन के मखमली और शीतल स्पर्श के साथ आवाज देकर गाँव के बाशिंदों को जगाते हैं और साहब का अमर संदेश सुनाते हैं:-

"क्या सोया उठ जाग मन मेरा,भई भजन का बेरा रे।
रंगमहल तेरा पडा रहेगा, जंगल होगा डेरा रे।

सौदागर सौदा को आया, हो गया रैन बसेरा रे।
कंकर चुन चुन महल बनाया, लोग कहें घर मेरा रे।

ना घर तेरा ना घर मेरा, चिङिया रैन बसेरा रे।
अजावन का सुमिरण कर लें, शब्द स्वरूपी नामा रे।

भंवर गुफ़ा से अमृत चुवे, पीवे सन्त सुजाना रे।
अजावन वे अमर पुरुष हैं, जावन सब संसारा रे।

जो जावन का सुमिरन करिहै, पडे चौरासी धारा रे।
अमरलोक से आया बन्दे, फिर अमरापुरु जाना रे।

कहे कबीर सुनो भाई साधो, ऐसी लगन लगाना रे।
क्या सोया उठ जाग मन मेरा, भई भजन की बेरा रे।"

अब रात बीत चुकी है। नया सूरज उगता है, ज्ञान के प्रकाश से अंतर्मन का अंधेरा दूर होता है। नूतन उम्मीदों के साथ जीवन का जागरण होता है। दादाजी साँसों को टटोलते हैं, साहब के कुछ नाम बुदबुदाते हैं, और धरती पर पग रखकर दिन की शुरुआत करते हैं...

जो स्वर चले प्रातः संचारी, सो पग धरे उठो संभारि।
दिवस समस्त हरषे बीते, जहां जाए तहाँ कारज जीते।।
भूमि में पग दीजिए, सुनो संत मतधीर।
कर जोरि बिनती करूँ, दर्शन देहू साहब कबीर।।

💐💐💐

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...