साहब का भक्त प्रेम का साधक होता हैं, अपने साहब के प्रति पूरी तरह से समर्पित होता हैं। यानी संसार से विरक्त, लेकिन प्रेम में बेसुध। साहब से मिलकर एकमेव हो जाना ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है।
कुछ भक्त साहब को पुरुष (नायक) तो कुछ स्त्री (नायिका) के रूप में देखते हैं, और वे प्रेम की लौकिक सीढ़िया चढ़ कर अलौकिक प्रेम तक पहुंचना चाहते हैं। अपने साहब का पल भर का वियोग भी उन्हें तड़पा जाता है। बहुत से संतों ने प्रेम को अथाह माना, जिसका तल मिलता नहीं। उसे प्रेम में मिली पीड़ा से भी इश्क होता है, क्योंकि दर्द भी वही देता है, और वही दवा भी बन जाता है।
अपने साहब की तवज्जो मिल जाए तो भी ठीक, न मिले तो भी उसके प्रेम में कमी नहीं आती। ऐसे में प्रेम का रंग सूफियाना हो जाता है, सुरति जाग उठती है। वह भक्त जिंदगी की डोर अपने साहब, अपने परमात्मा को सौंप देता है, उनके चरणों में जिंदगी रख देता है।
💐💐💐
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें