बहुत से दर्दों की दवा इंसानी हाथों में नहीं हुआ करती। प्रकृति का अपना अलग ही नियम होता है। प्रकृति का नियम सबके लिए बराबर होता है, अपने आप में सर्वोपरि होता है। जिसे न चाहकर भी मूर्त और अमूर्त जीव जगत स्वीकार करने के लिए बाध्य होता है।
कहते हैं संतों के पास जीवन और जीवन के पार का भी बोध होता है, और वे प्रकृति के नियमों को भी प्रभावित करने में सक्षम होते हैं। कहते हैं दैहिक, दैविक और भौतिक घटनाओं में से मृत्यु एक ऐसी घटना है जिसका रास्ता भी संतजन मोड़ देते हैं या स्थगित कर देते हैं।
प्राचीन समय से ही अबूझ समस्याओं के निवारण के लिए लोग संतों के पास जाया करते हैं। संतों के पास दिव्य ज्ञान का भंडार होता है, अमृत घट होता है, स्वाति बून्द होता है। जिसका पान कर लोग जीवन की अतृप्त प्यास बुझाया करते हैं।
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