लेकिन पता नहीं क्यों गुरुदेव पंथ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब का विचार आते ही मैं मर्यादित हो जाता हूं, मौन हो जाता हूं, अगाध श्रद्धा और प्रेम से भर जाया करता हूं। वो कुछ और थे, उनका जीवन दिव्य था, उनका दर्शन, उनकी वाणी बड़ी सुगंधित सी थी, वे नस नस में रचे बसे हैं। और यही संवेदनाएं, यही भावनाएं हुजूर उदितमुनि नाम साहब के लिए भी पाता हूं।
वंश गुरुओं की एक दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती, हर ताज का समय, देश, काल और सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार मानव को मानव से जोड़ने, आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की अलग अलग अनुपम और विशिष्ट शैली होती है। आज पुर्णिमा का यह दिन कबीर पंथ के लिए, मानव समाज, जीव जगत और सृष्टि के लिए ऐतिहासिक होने जा रहा है। इस शुभ अवसर पर साहब के चरणों में सादर सप्रेम साहेब बंदगी साहेब।
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