"धर्मदास साहब से हमने केवल दो ही बातें सीखी। पहली बात तो अपने सद्गुरु की आज्ञा पर तत्पर रहना और दूसरी बात अपने जीवन में जोर जोर कर फुट फुटकर रोना। ये दोनों बातें बड़ी कीमती होती है।"
उपरोक्त अनुकरणीय बातों में साहब की पहली बात तो मै बिल्कुल भी शिरोधार्य नहीं करता। साहब की कोई बात नही मानता, कोई आज्ञा नहीं मानता।
लेकिन जहाँ तक दूसरी बात है तो साहब की यह बात बिल्कुल मानता हूँ। खूब रोता हूँ, उनके लिए रोने के अलावा मुझे कुछ और नहीं सूझता है। मेरे नयन उनकी याद में सदैव झरते रहते हैं।
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