जी चाहता है कुछ विराम लूँ। विचार जो बेलों की तरह यहाँ वहाँ फैले हैं उन्हें छंटाई कर लूँ, बुहार लूं, समेट लूँ, अपने को जरा संभाल लूं। एकांत के सरोवर में थोड़ी और गहरी डुबकी लगा लूं, खुद को करीब से और निहार लूं, खुद को खुद से जोड़ लूँ।
चाहतों के बादल बरसने लगे हैं, कामनाओं की झड़ी लगी हुई है। इन्हें सही दिशा दे लूँ, सुरति को संवार लूँ, नाम के चादर में अस्तित्व ढंक लूँ, समा लूँ। जी चाहता है विराम लूँ।
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