गुरुवार, 7 मई 2020

रजनीगंधा...💐

जामुनी रंग, बोलती आंखें, माथे पर दमकती छोटी सी बिंदी, नदी की चंचल लहरों की सी उसकी बोली अच्छी लगती थी। गाँव की सोंधी मिट्टी से महकती पुरवाई उसकी ओढ़नी उड़ाया करती थी। उसे देख दिल धड़क उठता, जमाना भूल जाता, अपने वजूद को उसी से न जाने कब जोड़ बैठा। वो मेरे लिए अमूल्य थी, मुझे सबसे प्यारी थी। उसी के उधेड़बुन में दिन की शुरुआत होती और उसी के ख्यालों में रातें अंगड़ाई लेती।

पहले प्यार की वो बातें, यादें और मुलाकातें जीवन के अंतरतम से लिपटी हुई हैं। हजारों गुलाबी प्रेम पत्रों में उकेरे हुए कोमल भावनाएं और जज्बात अपने युवापन की याद दिलाते हैं। उसके साथ शायद कई जन्मों का रिश्ता है, युगों का बंधन है, तभी तो वो नहीं बिसरती। 

तब आँगन में मोगरे के फूल लगाए थे, जो अब सुख गए हैं, उसपे फूल नहीं लगते। लेकिन अब एक दूसरे गमले में रजनीगंधा लगा रखा है। जिसकी भीनी गंध से अब भी हृदय प्रफुल्लित और उल्लासित रहता है। जानता हूँ वो अब करीब नहीं, आसपास नहीं, लेकिन उसकी महक रजनीगंधा बनकर मेरे जीवन को सदा महकाती रहती है...💐💐💐

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