कौन हो तुम जो अपने होने का अदृश्य अहसास कराते हो, इशारों में कई राज की बातें कह जाते हो। कौन हो तुम जो कभी रुलाते और कभी हंसाते हो, पर्दे के पीछे चुपके से सारा खेल रचाते हो? कौन हो तुम जो हर सुबह नींद से जगाते और हर रात प्यारी सी थपकी देकर सुलाते हो?
तुम वही तो नहीं जिसके इशारे पर पुरवाई बहती है, शाम ढ़लती है, भोर होता है। तुम वही तो नहीं जो धरती को हरे रंग से रंगते हो, जिसके स्पंदन से ब्रम्हांड गुंजायमान है, तारे और नक्षत्र निर्बाध गति से उगते और अस्त होते हैं। तुम वही तो नहीं जो रहस्य है शब्दातीत है, गुणातीत है? जिनका नाम और रूप प्रणम्य है, जिसे याद कर प्राणी मात्र का सिर श्रद्धानवत झुक जाता है, कहीं तुम वही तो नहीं?
कभी तो सामने आओ, अपने रूप से परिचय तो कराओ, तुम्हें जरा छूकर तो देखूं। सुख दुख की चार बातें कर लेंगे, साथ बैठकर चाय की प्याली का मजा ले लेंगे, एक सेल्फी ले लेंगे...
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