शनिवार, 20 अप्रैल 2019

हाथ थाम लीजिए साहब...💐

कई चीजें ऐसी होती है जिससे डर जाता हूँ, जी घबरा जाता है, मन कांप जाता है, कुछ समझ नहीं आता क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है, कौन कर रहा है। बड़ा कन्फ्यूजन सा बना रहता है, नितांत अकेलापन सा रहता है, आपके अलावा कुछ सूझता नहीं है।

स्मरण रोकने की कोशिश करता हूँ, लेकिन नाकाम रहता हूँ, रुकता ही नहीं है, जिसके कारण ठीक से सो भी नहीं पाता। लंबे समय से यही स्थिति बनी हुई है। होश हवास काबू में नहीं रहता, दैनिक और व्यवहारिक कार्य और भी बाधित सा हो जाता है।

लेकिन इस बात का अहसास है कि इससे आगे जाना है, इससे पार पाना है, खूंटा पकड़े ही रहना है। हे परमात्मा, हे साहब इस विचित्र परिस्थिति से उबारिये...💐

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