रविवार, 24 फ़रवरी 2019

टुटता हुआ तारा...💐

चांदनी रात में छत पर लेटे हुए उन टूटते हुए तारों को निहारना अच्छा लगता है जो अपना वजूद खो रहे होते हैं। दरअसल खुद का वजूद खोना इंसान के लिए बेहद मुश्किल होता है। उसका अहं ऐसा करने नहीं देती, क्योंकि उसकी स्वाभाविक वृत्ति ही अहंकार है। लेकिन जिसने अपने अहं को छोड़ दिया, अपने को अर्पित कर दिया, उसका जीवन स्वतः रूपांतरित हो जाता है, उसमें संतत्व का उदय होता है, उसके जीवन में सादगी का उदय होता है।

अपने अस्तित्व से टूटकर ही तो मुक्ति और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। जब तक संसार से मन जुड़े रहता है तब तक आध्यात्मिक चेतना का प्रादुर्भाव नहीं होता, लेकिन जैसे ही जगत से व्यक्ति का मोह भंग होता है वह निर्वाण और कैवल्य की ओर अपने आप ही बढ़ जाता है।

व्यक्ति को जीवन में जल्द ही संसार की निसारता का भान होना अति आवश्यक है, जगत से टूटना अति आवश्यक है। जिस दिन मनोविचार कण कण होकर अपने अस्तित्व को खो देता है, वजूद को खो देता है, उसी क्षण उसे सत्य का बोध होता है, परमात्मा का बोध होता है। यह बोध ही जीवन का सार है, जीवन की पूर्णता है।




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