साहब अनंत हैं। उन्हें कितना भी पा लो, फिर भी वो पाने को शेष हैं। उन्हें पा-पाकर थक जाओगे, लेकिन उन्हें बाहों में समेट नहीं पाओगे।
मानवीय आँखे तो उनके रूप का बस एक सूक्ष्म अंश, छोटा सा रूप ही निहार पाती है। वो नित नए रूप लेकर, और भी विस्तृत, और भी विराट रूप में अपने होने का अहसास कराते हैं।
उनके रूप का दीदार करते आंखें छलक पड़ती हैं। हृदय भर आता है। कुछ कहने के लिए शब्द कम पड़ जाते हैं, जीवन कम पड़ जाता है।
लोग कहते हैं, मौन हो जाओ, कुछ न कहो। लेकिन दिल करता है सबको बताऊँ, सबको दिखाऊँ। एक ही मौका है, एक ही अवसर है, इसलिए कहना जरूरी है।
सर्गुण की सेवा करो निर्गुण का करूँ ज्ञान।
निर्गुण सरगुण ते परे तहां हमारा ध्यान।।
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