रविवार, 14 अप्रैल 2024

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है।

मैने सोचा की क्यों न इस नवरात्रि पर साहब की साधना किया जाए। मैने अपनी दुकान और व्यवसाय को अपने सहयोगी को सुपुर्द कर दिया और अपने आप को घर के कमरे में बंद कर लिया। सिर्फ दो वक्त खाना खाने और नित्यक्रिया के लिए कमरे से बाहर निकलता था। किसी से कोई बात भी नहीं करता था। 

कमरे में साहब की अमृत कलश ग्रंथ पढ़ता था और नाम सुमिरन के साथ ध्यान करता। नौ दिन और नौ रातें जागता ही रहा। सबकुछ झोंक दिया। वो नौ दिन मेरी जिन्दगी बदलने वाला रहा। जब कमरे से बाहर निकला नयन भीगे हुए थे, दुनिया को देखने का मेरा नजरिया पूरी तरह बदल चुका था। 

कुछ ऐसा हुआ की हाथ पांव लडखड़ा रहे थे, खुशियों से आंखें गीली हो चुकी थी, साहब मेरे नयनों में समा चुके थे, सासों में महक रहे थे, उनकी लालिमा मुझे चहुंओर घेरे हुए थे, उन्हें अपने घर बैठे ही देख पा रहा था। परमात्मा की अनुभूति, उनका अहसास, उनकी दिव्यत्म छुअन मैंने पहली बार महसूस की। उस दिन से मैं उनका हो गया। साधना से मुझे मेरे अनेकों प्रश्नों के उत्तर मिले, लेकिन कुछ प्रश्न अनुत्तरित ही रह गए। जब कभी साहब प्रत्यक्ष मिलेंगे तो उनसे निवेदन करूंगा की वो मेरे अनुत्तरित प्रश्नों का जवाब दें।

पिया मिलन की यादें 💕

साहब की दो बातें 💕💕

पन्थ श्री हुजूर गृन्धमुनि नाम साहब कहते हैं:-

"धर्मदास साहब से हमने केवल दो ही बातें सीखी। पहली बात तो अपने सद्गुरु की आज्ञा पर तत्पर रहना और दूसरी बात अपने जीवन में जोर जोर कर फुट फुटकर रोना। ये दोनों बातें बड़ी कीमती होती है।"

उपरोक्त अनुकरणीय बातों में साहब की पहली बात तो मै बिल्कुल भी शिरोधार्य नहीं करता। साहब की कोई बात नही मानता, कोई आज्ञा नहीं मानता।

लेकिन जहाँ तक दूसरी बात है तो साहब की यह बात बिल्कुल मानता हूँ। खूब रोता हूँ, उनके लिए रोने के अलावा मुझे कुछ और नहीं सूझता है। मेरे नयन उनकी याद में सदैव झरते रहते हैं।


साहब का दर्द 💕

जब हम दर्द में होते हैं तो हमारी करूँण पुकार क्या साहब तक नहीं पहुँचती होगी? हमारी दर्द भरी पुकार साहब तक जरूर पहुँचती है। वो हमारी दुर्दशा देखकर सो भी नहीं पाते होंगे। जिस दिन हम उनके नाम की कंठी माला धारण करते हैं उसी दिन से हमारी तारी उनसे जुड़ जाती है। उसी दिन से वो हमारी सुध लेना शुरू कर देते हैं, उसी दिन से वो हमारे हो जाते हैं और हम उनके। 

हमारे दर्द में तो वो हर क्षण हमारे साथ होते हैं, कभी अपनी वाणीयों के रूप में, कभी चरणामृत तो कभी प्रसाद के रूप में और कभी किसी संत के रूप में। कभी प्रत्यक्ष तो कभी अप्रत्यक्ष रूप में। लेकिन उनके दर्द में उनके साथ कौन होता है? वो तो जग कल्याण के लिए ही हमारे बीच हैं, क्या हमारी चीख पुकार सुनकर उनके नेत्रों से अश्रु धारा नहीं बहती होगी? 

जब कभी उनकी जगह अपने आप को रखकर देखता हूँ तो पाता हूँ की साहब बेपनाह दर्द में हैं, साहब नितांत अकेले हैं। और हम यह समझकर पल्ला झाड़ लेते हैं की वो तो परमात्मा हैं, साहब हैं, उन्हें भला क्या दर्द, क्या पीड़ा...। 
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सोमवार, 31 जुलाई 2023

व्यवस्था सुधार की आवश्यकता

ये लेख मैं थोड़ा डर-डरकर लिख रहा हूँ, क्योंकि चली आ रही व्यवस्था पर कुछ लिखता हूँ तो मुझे किसी न किसी का आब्जेक्शनल फोन आ जाता है, किसी किसी का धमकी भरा फोन भी। कहते हैं चली आ रही व्यवस्था को, संतो को, सतगुरु को चुनौती देते हो, उनकी आलोचना करते हो, ग्रन्थों में लिखी वाणियों की अवहेलना करते हो। फिर भी मेरे मन के विचार लिख रहा हूँ। किसी को पीड़ा पहुचे तो क्षमाप्रार्थी हूँ।

मैं भु-दान और आश्रम व्यवस्था के खिलाफ हूँ। अगर कोई भक्त अपनी जमीन, खेत, घर आदि किसी संस्था, संत, आध्यात्मिक गुरूओं को दान करता है तो अधिकतर मामलों में उस गांव में आश्रम खोल दिया जाता है तथा व्यवस्था चलाने के लिए पुजारी, सेवक की नियुक्ति की जाती है। और यहीं से शुरू होता है अपराध और अनैतिक कर्मो का सिलसिला।

इसका हल मैं लम्बे समय से खोज रहा हूं की आश्रमों की अनैतिक और आपराधिक गतिविधियों पर कैसे रोक लगाई जाए। क्या आपके पास आश्रमों में होने वाले अपराधों और अनैतिक कर्मो को रोकने के लिए कोई सुझाव या हल है जो मेरी बुद्धि में उपजे सवालों को सुलझा सके?

शनिवार, 26 नवंबर 2022

आनंदी चौका आरती ...💐

कल दिनाँक 25 नवंबर 2022 को मेरे ससुराल ग्राम चिचोली, नांदघाट में आनंदी चौका आरती था। आदरनीय महंत दीपक साहब आए थे, उनसे मेरा हृदय का नाता बरसों से जुड़ा हुआ है। आंखें भाववश छलक उठीं।

जीवन में दुख ही अंतिम सत्य है ...💐

बचपन में प्राथमिक शिक्षा गाँव में पूरी हुई। कक्षा 6 से 8 की माध्यमिक शिक्षा के लिए दूसरे गाँव लगभग 10 किलोमीटर की पैदल यात्रा तय करके जाया करता था। फिर नवमीं से दसवीं कक्षा के लिए रोज 36 किलोमीटर की सायकल यात्रा करता था। मैं अक्सर स्कूल से घर सुनसान रास्तों को पार करके अंधेरा होने के बाद ही पहुँचता। बेहद गरीबी में बचपन गुजरा है। दो कपड़े हुआ करते उसमें भी एक स्कूल ड्रेस। पैंट पीछे से दोनो साइड से फटा हुआ।

लम्बा परिवार था, खाने के लिए भी घर में झगड़े हुआ करते, भर पेट खाना किसी को नहीं मिलता था। पिताजी ने कैसे भी करके ऊँची शिक्षा दिलाने के लिए शहर में मेरा एडमिशन कराया। किराए के खपरैल और मिट्टी से बने एक कमरे में विद्यार्थी जीवन बिता। स्कूल के बीच चूल्हे में दो वक्त का खाना बनाने, बर्तन और कपड़े धोने की चिंता में वक्त बीतता। घर से महीने का रोज दस रुपए के हिसाब गिनकर महीने भर के खर्चों के लिए तीन सौ रुपये मिलता। ऊपर से जन्मजात पेटदर्द...। इन कठिनाईयों और आसपास फैले विपरीत परिस्थितियों के बीच रो पड़ता।

अब दो बेटियों का पिता हूँ, किसी का पति और घर का बड़ा पुत्र भी। अहसास होता है कि मेरे परिवार ने मुझे किस तरह पाला पोसा होगा, किस तरह ऊंची तालीम दी होगी, किस तरह संभाला होगा। उनका त्याग, उनका बलिदान याद करता हूँ। लेकिन जब अपने जीवन को ऊपर उठकर देखता हूँ तो पाता हूँ कि हर किसी का जीवन पीड़ा में बीत रहा है। वो मुझसे भी कहीं अधिक दुखी हैं, मुझसे भी अधिक कष्टों से घिरे हैं, और मन को संतोष कर लेता हूँ, मान लेता हूँ कि दुख ही इस सृष्टि का अंतिम सत्य है।

स्वयं को जानें या साहब को?

साहब, स्वयं को कैसे जानें? अनेक लोग कहते हैं कि आत्मसाक्षात्कार जैसी कोई चीज होती हैं, इससे अपने असली शरीर और शुद्धतम आत्मा का बोध होता है। लेकिन मुझे आज तक अपना कोई बोध नहीं हुआ। मेरे सांसों में सत्यनाम का सुमिरन होता है और नजरों में आपका स्वरूप। मैं इन्हीं दोनों में स्थित और स्थिर होता हूँ, यही मेरे ध्यान का आधार है। इससे मुझे आपकी सत्ता का बोध होता है न कि खुद का। मैं किसी भी हाल में आपका नाम और रूप नहीं छोड़ सकता। छूटते ही जबरदस्त खालीपन का आभास होता है, ध्यान में विचार शून्यता तो होती है लेकिन उस शून्यता में आप होते हैं। मेरा ध्यान आपके नाम और रूप का आदी है, एक भी पल इन्हें ओझल नहीं होने देता। काम के दौरान भी, टीवी देखते भी, नींद में भी, हर गतिविधियों में आपका नाम और रूप रहता है। मैं तो आपको साक्षी होकर निहारता हूँ। यही क्रिया बरसों से चली आ रही है। खुद के बजाज आप और आपकी लीलाएं नजर आती हैं। जब कोई कहता है खुद को जानों, आत्मसाक्षात्कार करो तो मैं कन्फ्यूज हो जाता हूँ। पाता हूँ मैं तो कहीं हूँ ही नहीं, आपमें खो गया, आपमें मिट गया।

साधना काल 💕

सन 2007 की बात है, नवरात्रि चल रही थी। मैने किसी से सुना था की नवरात्रि में साधक की मनोकामनाएं पूर्ण होती है, साधनाएं सफल होती है। मैने सोचा...